Tuesday, April 5, 2011

Aarti

ॐ सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते॥

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी॥ टेक॥

मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को। उज्जवल से दोउ नैना, चन्द्रबदन नीको॥ जय 0

कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै। रक्त पुष्प गलमाला, कण्ठन पर साजै॥ जय0

केहरि वाहन राजत, खड़ग खप्परधारी। सुर नर मुनिजन सेवक, तिनके दुखहारी॥ जय 0

कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती। कोटिक चन्द्र दिवाकर, राजत सम ज्योति॥ जय 0

शुम्भ निशुम्भ विडारे, महिषासुर घाती। धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती॥ जय 0

चण्ड मुण्ड संघारे, शोणित बीज हरे। मधुकैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥ जय 0

ब्रहमाणी रुद्राणी तुम कमला रानी। आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी॥ जय 0

चौसठ योगिनी गावत, नृत्य करत भैरुं। बाजत ताल मृदंगा, अरु बाजत डमरु॥ जय 0

तुम हो जग की माता, तुम ही हो भर्ता। भक्तन् की दुःख हरता, सुख-सम्पत्ति करता॥ जय 0

भुजा चार अति शोभित, खड़ग खप्परधारी। मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी॥ जय 0

कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती। श्री मालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति॥ जय 0

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